खुद ई-रिक्शा चलाकर 9 किलोमीटर दूर पढ़ने जाती हैं ये मुस्लिम बेटियां

रामपुर: बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, ( Beti Bachao-Beti Padhao) सही मायने में इस एक नारे का असली मतलब तो फारुख ने ही समझा है. तभी तो वो किसी भी कीमत पर ऊंची तालीम (Education) की ओर बढ़ रहीं अपनी तीन बेटियों (Daughter) की पढ़ाई को रुकने नहीं देना चाहता. घर से स्कूल (School)  दूर था,  उसने बेटियों की तालीम जारी रखने के लिए ई-रिक्शा (e-rickshaw) खरीद दिया, ताकि वे उससे स्कूल जा सकें. उसकी एक बेटी शमां ने उसे चलाना सीख लिया और काम आसान हो गया. अब वो ई-रिक्शे में गांव की लड़कियों को लेकर निकल पड़ती है स्कूल. फारुख मजदूरी करके अपना घर चलाते हैं लेकिन अब बेटियों की शिक्षा को लेकर उनके हौसले को क्षेत्र के लोग सलाम कर रहे हैं.


फारुख की पत्नी इस चिंता में रहती थी कि स्कूल घर से दूर है, रास्ते में कोई अनहोनी न हो जाए, बस से आने-जाने का खर्च और बेटियों का दर्द दोनों एक साथ परेशान कर रहे थे. तभी फारुख ने यह तरकीब निकाल ली. गांवों मेंं खासतौर पर मुस्लिम कम्युनिटी में बेटियों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर इतनी ललक कम ही देखने को मिलती है.  फारुख से उसकी बेटी शमां कहती रहती थी कि अब्बू पढ़ने-लिखने का वक्त आने-जाने में खर्च हुआ जा रहा है. लेकिन अब यह समस्या हल हो गई है. फारुख की यह कोशिश उस सोच को भी आईना दिखाती है जो कहती है कि “बेटियों को पढ़ाने से क्या फायदा?